Worship Ganesha Like This, All Your Wishes Will Be Fulfilled : धर्मशास्त्रों में श्रीगणेश को प्रथम पूजनीय बताया गया है। मान्यता है कि गणपतिजी की आराधना से सर्व मनोकामना सिद्ध होती है और सभी विघ्नों का नाश होता है।

नए काम को शुरू करने से पहले क्यों लिया जाता है श्रीगणेश का नाम, पौराणिक कहानी

Worship Ganesha Like This, All Your Wishes Will Be Fulfilled

Worship Ganesha Like This, All Your Wishes Will Be Fulfilled

Worship Ganesha Like This, All Your Wishes Will Be Fulfilled : धर्मशास्त्रों में श्रीगणेश को प्रथम पूजनीय बताया गया है। मान्यता है कि गणपतिजी की आराधना से सर्व मनोकामना सिद्ध होती है और सभी विघ्नों का नाश होता है। गणपति शीघ्र प्रसन्न होने वाले और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देने वाले देवता है। इसलिए उनके अनेक स्वरूपों की पूजा सनातन संस्कृति में की जाती है। उनकी पूजा-अर्चना कर सभी शुभ कार्यों की शुरुआत की जाती है। श्रीगणेश की आराधना वैसे तो सालभर रोजाना करने का प्रावधान है, लेकिन कुछ खास तिथि और दिनों पर उनकी उपासना करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। चतुर्थी तिथि श्रीगणेश को समर्पित है और इस दिन गजानन की पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।

एक दिन भगवान भोलेनाथ स्नान करने के लिए कैलाश पर्वत से भोगवती गए। महादेव के प्रस्थान करने के बाद मां पार्वती ने स्नान प्रारंभ किया और घर में स्नान करतो हुए अपने मैल से एक पुतला बनाकर और उस पुतले में जान डालकर उसको सजीव किया गया। पुतले में जान आने के बाद देवी पार्वती ने पुतले का नाम गणेश रखा। पार्वतीजी ने बालक गणेश को स्नान करते जाते वक्त मुख्य द्वार पर पहरा देने के लिए कहा। माता पार्वती ने कहा कि जब तक में स्नान करके न आ जाऊं किसी को भी अंदर नहीं आने देना।

भोगवती में स्नान कर जब श्रीगणेश अंदर आने लगे तो बाल स्वरूप गणेश ने उनको द्वार पर रोक दिया। भगवान शिव के लाख कोशिश के बाद भी गणेश ने उनको अंदर नहीं जाने दिया। गणेश द्वारा रोकने को उन्होंने अपना अपमान समझा और बालक गणेश का सर धड़ से अलग कर वो घर के अंदर चले गए।

शिवजी जब घर के अंदर गए तो वह बहुत क्रोधित अवस्था में थे। ऐसे में देवी पार्वती ने सोचा कि भोजन में देरी की वजह से वो नाराज हैं, इसलिए उन्होंने दो थालियों में भोजन परोसकर उनसे भोजन करने का निवेदन किया। दो थालियां लगी देखकर शिवजी ने उनसे पूछा कि दूसरी थाली किसके लिए है? तब शिवजी ने जवाब दिया कि दूसरी थाली पुत्र गणेश के लिए है, जो द्वार पर पहरा दे रहा है। तब भगवान शिव ने देवी पार्वती से कहा कि उसका सिर मैने क्रोधित होने की वजह से धड़ से अलग कर दिया।

इतना सुनकर पार्वतीजी दुखी हो गई और विलाप करने लगी। उन्होंने भोलेनाथ से पुत्र गणेश का सिर जोडक़र जीवित करने का आग्रह किया। तब महादेव ने एक हाथी के बच्चे का सिर धड़ काटकर गणेश के धड़ से जोड़ दिया। अपने पुत्र को फिर से जीवित पाकर माता पार्वती अत्यंत प्रसन्न हुई। कहा जाता है कि जिस तरह शिव ने श्रीगणेश को नया जीवन दिया था, उसी तरह भगवान गणेश भी नया जीवन अर्थात आरम्भ के देवता माने जाते हैं।

ऐसे करें गणेश आराधना, पूरी होगी सब मनोकामना


भगवान गणेश की आराधना करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है और गणपति प्रसन्न होकर अपने भक्तों को सुख-समृद्धि और आरोग्य का आशीर्वाद देते हैं। भगवान गणेश रिद्धि-सिद्धि के दाता और जीवन का कल्याण करने वाले हैं। चतुर्थी तिथि श्रीगणेश की तिथि है इसलिए इस दिन इनकी आराधना से विशेष फल की प्राप्ति होती है। सूर्योदय के पूर्व उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं। उसके बाद लाल रंग के वस्त्र धारण करें। उदित होते सूर्य को तांबे के लोटे से जल दें। घर को स्वच्छ कर एक पाट रखें।

पाट पर लाल कपड़ा बिछाए और श्रीगणेश को जल में स्नान करवाकर उसके ऊपर उनको विराजमान करें। श्रीगणेश को कुमकुम, अक्षत, अबीर, गुलाल, हल्दी, मेंहदी, कलेवा, जनेऊ जोड़ा, दुर्वा और लाल फूल समर्पित करें। उनको लड्डू, मोदक, पंचमेवा, पंचामृत, ऋतुफल, नारियल आदि का भोग लगाएं। गुड़-घी की धूप दें और श्रीगणेश के समक्ष तेल और गाय के घी का दीपक लगाएं।

धूपबत्ती जलाएं। इसके बाद गणेशजी की आराधना के लिए गणपति अथर्वशीर्ष, गणपति स्त्रोत, गणपति चालीसा, गणपति विघ्नविनाशक स्त्रोत, गणपति संतान प्राप्ति स्त्रोत आदि का पाठ करें। ओम गं गणपतये नम: मंत्र का जाप 27 बार करें। चतुर्थी तिथि को रात्रि के समय भी ईसी विधि-विधान से श्रीगणेश की आराधना करें।

यह रखे सावधानियां


श्रीगणेश को अर्पित की जाने वाली दुर्वा की संख्या 5, 11 या 21 होना चाहिए। इसमें कम से कम तीन या पांच पत्तियां होना चाहिए। दुर्वा को माला बनाकर भी चढ़ाया जाता है। श्रीगणेश को पूजा करते समय ओम गं गणपतये नम: का जाप करते हुए 21 दुर्वा समर्पित करें। श्रीगणेश को 21 मोदकों का भोग लगाएं। इनमें से 5 मोदक गणपतिजी को समर्पित कर दें। 5 मोदक ब्राह्मण को दान कर दें। बाकि बचे हुए मोदक को प्रसाद रूप में वितरित कर दें।

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